साक्षात्कार
आज अचानक से वो सामने आ गया। चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था। बस एक झलक नज़र आई, मै ठिठका, उसे देखने के लिए रुका, याद नहीं आ रहा था कौन है। वो भी मुझे ऐसे ही निहार रहा था, जैसे उसका कुछ खोया हो। एक दुसरे को पहचानने की कोशिश करते हुए हमारी आँखे टकराई। ऐसा लग रहा था की कभी उन आंखों में सूरज सी चमक रही होगी, किन्तु आज उनमें कुछ मायूसी नज़र आ रही थी।
आज आखों थकन से भरी थी। चेहरे की चमक भी कुछ कम लग रही थी। ऐसा लग रहा था की इस चेहरे से मेरा बेहद करीबी रिश्ता है। मैं अक्सर इस को देखता हूँ, बस कभी बात नहीं की। पता नहीं पिछली बार कब इसे ध्यान से देखा था, जो मुझे याद ही नहीं आ रहा था।
पिछले कुछ सालों से जीवन में व्यस्तता कुछ ज्यादा ही हो गई, बहुत से अपने, ज़िंदगी से दौड़ में पीछे छूट गए। हर रोज़ नई ऊंचाई को छूने की चाहत में अपनी ही सुध भूल गया। बहुत से चेहरे स्मृति पटल से ओझल हो गए , मैं उन्हें भूल गया, शायद वो भी मुझे भूल गए होंगे। अरे ! जिस रफ़्तार से मेरी ज़िंदगी की गाड़ी दौड़ी है, उनकी भी तो दौड़ी होगी। अगर मैंने उन्हें याद नहीं किया तो उन्होंने कोनसा सुबह शाम मेरे नाम की माला जपि है, वो भी तो मुझे भूल गए। भूल गए तो जाने दो, मैं ही क्यों चिंता करूँ।
लेकिन ये कौन है जो मुझे ऐसे देख रहा है जैसे उसकी दुर्दशा का कारण मैं हूँ।
मैंने दिमाग पर ज़ोर देकर याद करने की कोशिश की, उसे ध्यान से देखा। वो भी इतने ही ध्यान से मुझे देख रहा था। उसके सर पर काफी बाल सफेद हो चुके थे जिन्हे मेहँदी छुपाने का असफल प्रयास कर रही थी। माथे और आँखों के नीचे झुर्रिआं दिखने लगी थी। उसकी आँखे भरने लगी थी, मै समझ नहीं पा रहा था, क्या हुआ। मैंने उससे कुछ नहीं कहा अभी तक, फिर उसकी आंखौं में नमी क्यों। चेहरा भी बुझा बुझा सा लग रहा था। तभी अपने गलों पर मुझे कुछ गीलापन महसून हुआ। नमी उसकी ही नहीं, मेरी आखों में भी थी। मुझे घबराहट होने लगी, कौन है ये जिसके कारण मेरे नयन भी बहने लगे। मैंने आंसुओं तो पोंछा तो उसने भी यही किया, तभी किसी में मुझसे कहा “बहुत संवर लिए इस आईने के सामने, चलो आपको बुला रहे है। ” हमने एक दुसरे को पहचान लिया था। अपने अक्स के इस मूक साक्षात्कार से मै सिहर गया था। जीवन की अंधी दौड़ में मैं खुद को ही भूल गया हूँ।